31 साल में पहली बार दिल्ली सरकार को हुआ घाटा || अरविंद केजरीवाल || दिल्ली चुनाव ||

|| दिल्ली चुनाव || दिल्ली सरकार (GNCTD) ने 2017-18 से लगातार राजकोषीय अधिशेष (Fiscal Surplus) दर्ज किया है। हालांकि, इस वित्तीय स्थिरता के बावजूद, शहर को बढ़ते वित्तीय दबाव और सीमित संसाधनों के कारण एक गंभीर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ सकता है।

राजकोषीय अधिशेष का रुझान

2017-18 से 2022-23 तक, दिल्ली ने बढ़ते हुए राजस्व अधिशेष दर्ज किए, जो 2022-23 में 14,456.91 करोड़ रुपये तक पहुंच गए। 2023-24 के लिए, 6,462.29 करोड़ रुपये का अधिशेष अनुमानित है। हालांकि, 2024-25 के बजट अनुमान ने चिंताएं पैदा की हैं, जहां 3,231.19 करोड़ रुपये का अधिशेष दिखाया गया है, लेकिन अतिरिक्त मांगों को शामिल करने पर यह 1,495.48 करोड़ रुपये के घाटे में बदल सकता है।

बजटीय बाधाएं और अतिरिक्त मांगें

दिल्ली सरकार का लगभग 61,000 करोड़ रुपये का स्वीकृत बजट मुख्य रूप से राजस्व व्यय के लिए है, जिसमें संचालन लागत, बुनियादी ढांचा रखरखाव और कल्याणकारी सब्सिडी शामिल हैं। लेकिन विभिन्न विभागों ने 7,362 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आवश्यकताओं की पहचान की है, जिससे बजट पर दबाव बढ़ रहा है। मुख्य आवंटन इस प्रकार हैं:

  • कानून विभाग: राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग की सिफारिशों के तहत पेंशन और भत्तों के लिए 141 करोड़ रुपये।
  • बिजली विभाग: उपभोक्ता सब्सिडी के लिए 512 करोड़ रुपये।
  • परिवहन विभाग: इलेक्ट्रिक बसों की संचालन लागत के लिए 941 करोड़ रुपये।
  • स्वास्थ्य विभाग: अस्पतालों के पुनर्निर्माण और चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय कॉलेज को अधिग्रहित करने के लिए 250 करोड़ रुपये।
  • सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण: 447 करोड़ रुपये।
  • दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (DMRC): COVID-19 से संबंधित परिचालन घाटे और JICA ऋण दायित्वों के लिए 3,271 करोड़ रुपये।

तत्काल वित्तीय चिंताएं

दिल्ली का मासिक वेतन, मजदूरी और ब्याज भुगतान पर खर्च 2,240 करोड़ रुपये है, जबकि वर्तमान नकद भंडार केवल 4,471 करोड़ रुपये है। यह भंडार सरकार को केवल दो महीने तक चलाने के लिए पर्याप्त है।

आगे का रास्ता

इस वित्तीय संकट से निपटने के लिए दिल्ली सरकार को निम्नलिखित कदम उठाने होंगे:

  1. राजस्व बढ़ाना: कर राजस्व या गैर-कर प्राप्तियों को बढ़ाने के उपाय।
  2. व्यय का युक्तिकरण: खर्चों में कटौती के क्षेत्र की पहचान करना या अनिवार्य खर्चों को प्राथमिकता देना।
  3. बाहरी सहायता: केंद्रीय प्राधिकरणों या वित्तीय संस्थानों से अनुदान या ऋण प्राप्त करना।
  4. सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): बुनियादी ढांचे और सेवाओं के लिए PPP मॉडल का उपयोग।
  5. वित्तीय अनुशासन: वित्तीय निरीक्षण को मजबूत करना और संसाधनों के उपयोग में दक्षता सुधारना।

आसन्न वित्तीय संकट इस बात पर जोर देता है कि सार्वजनिक वित्तीय स्थिरता बनाए रखने और आवश्यक विकासात्मक और कल्याणकारी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए तत्काल और सक्रिय कदम उठाने की आवश्यकता है।

दिल्ली सरकार (GNCTD) ने 2017-18 से लगातार राजकोषीय अधिशेष (Fiscal Surplus) दर्ज किया है। हालांकि, इस वित्तीय स्थिरता के बावजूद, शहर को बढ़ते वित्तीय दबाव और सीमित संसाधनों के कारण एक गंभीर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ सकता है।

राजकोषीय अधिशेष का रुझान

2017-18 से 2022-23 तक, दिल्ली ने बढ़ते हुए राजस्व अधिशेष दर्ज किए, जो 2022-23 में 14,456.91 करोड़ रुपये तक पहुंच गए। 2023-24 के लिए, 6,462.29 करोड़ रुपये का अधिशेष अनुमानित है। हालांकि, 2024-25 के बजट अनुमान ने चिंताएं पैदा की हैं, जहां 3,231.19 करोड़ रुपये का अधिशेष दिखाया गया है, लेकिन अतिरिक्त मांगों को शामिल करने पर यह 1,495.48 करोड़ रुपये के घाटे में बदल सकता है।

बजटीय बाधाएं और अतिरिक्त मांगें

दिल्ली सरकार का लगभग 61,000 करोड़ रुपये का स्वीकृत बजट मुख्य रूप से राजस्व व्यय के लिए है, जिसमें संचालन लागत, बुनियादी ढांचा रखरखाव और कल्याणकारी सब्सिडी शामिल हैं। लेकिन विभिन्न विभागों ने 7,362 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आवश्यकताओं की पहचान की है, जिससे बजट पर दबाव बढ़ रहा है। मुख्य आवंटन इस प्रकार हैं:

  • कानून विभाग: राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग की सिफारिशों के तहत पेंशन और भत्तों के लिए 141 करोड़ रुपये।
  • बिजली विभाग: उपभोक्ता सब्सिडी के लिए 512 करोड़ रुपये।
  • परिवहन विभाग: इलेक्ट्रिक बसों की संचालन लागत के लिए 941 करोड़ रुपये।
  • स्वास्थ्य विभाग: अस्पतालों के पुनर्निर्माण और चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय कॉलेज को अधिग्रहित करने के लिए 250 करोड़ रुपये।
  • सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण: 447 करोड़ रुपये।
  • दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (DMRC): COVID-19 से संबंधित परिचालन घाटे और JICA ऋण दायित्वों के लिए 3,271 करोड़ रुपये।

तत्काल वित्तीय चिंताएं

दिल्ली का मासिक वेतन, मजदूरी और ब्याज भुगतान पर खर्च 2,240 करोड़ रुपये है, जबकि वर्तमान नकद भंडार केवल 4,471 करोड़ रुपये है। यह भंडार सरकार को केवल दो महीने तक चलाने के लिए पर्याप्त है।

आगे का रास्ता

इस वित्तीय संकट से निपटने के लिए दिल्ली सरकार को निम्नलिखित कदम उठाने होंगे:

  1. राजस्व बढ़ाना: कर राजस्व या गैर-कर प्राप्तियों को बढ़ाने के उपाय।
  2. व्यय का युक्तिकरण: खर्चों में कटौती के क्षेत्र की पहचान करना या अनिवार्य खर्चों को प्राथमिकता देना।
  3. बाहरी सहायता: केंद्रीय प्राधिकरणों या वित्तीय संस्थानों से अनुदान या ऋण प्राप्त करना।
  4. सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): बुनियादी ढांचे और सेवाओं के लिए PPP मॉडल का उपयोग।
  5. वित्तीय अनुशासन: वित्तीय निरीक्षण को मजबूत करना और संसाधनों के उपयोग में दक्षता सुधारना।

आसन्न वित्तीय संकट इस बात पर जोर देता है कि सार्वजनिक वित्तीय स्थिरता बनाए रखने और आवश्यक विकासात्मक और कल्याणकारी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए तत्काल और सक्रिय कदम उठाने की आवश्यकता है।

Categories:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *